अनियमित कर्मचारी गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुवा


गुलाम अनियमित कर्मचारी..

तोड़ गुलामी की जंजीरे,
नियमितीकरण का आगाज कर।।
कब तक सहन करेगा जुल्मों को,
सीने में अब अपने तू आग लगा।

सोने का वक्त बीत गया,
खुद को अब नींद से जगा।।
दामन थाम ले प्रा. कर्मचारी संघ का।।
नियमितीकरण में अपना दाव लगा।

वक्त बीत गया है बहुत,
इन जुल्मों को न अब सहता जा,
अपनी लड़ाई खुद लड़ कर जीत,
फिर एक नया इतिहास बना।।

अनियमित की इन जंजीरों को तोड़ कर,
गुलामी से खुद को आजाद करा।।
नियमित हो के इस दुनिया को,
प्रगतिशील संघ का दम दिखा।

हाथ मे हाथ धरा न बैठ,
लड़ाई को अब अपनी आघे बढ़ा।
डर का चादर छोड़ के,
हिम्मत से खुद को उठा।।

युवा कवि साहित्यकार
अनिल कुमार पाली, तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
मो:- 7722906664,


गुलाम सा अनियमित कर्मचारी

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