भेंड़ी मन के भीड़…!!
भेंड़ी मन के भीड़ ओमा बिघवा मन के राज…!
मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!
गंजहा दरूहा मनखे मन के दम म जिता चुनई
भगनहा मेर अँइठा पइसा जम के करा कमई
ओमेर लेप लगावा जेन मेर न पीरा न खाज…!
मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!
बाढ़े लइकन खोखसी मछरी चिखला म सनायँ
अउ समाज के केंवटा मन फरी पानी म मिलायँ
पागी छोर के भागयँ चउखट लांघ के आज…!
मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!
दाई ददा ल देखव जा के अपने म भुलाय रथे
लइकन आवय कतको बेर चाहे कहूँ जाय कथे
मोबाइल सत्यानासी बंद करा दिस मेल-मिलाप…!
मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!
भेंड़ी मन ल काटय कसाई जउन गड़रिया
धन के जोर म मुखिया बन गे अइसन बहरुपिया
कई झन जात बदल के जात म करयँ आघात…!
मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!
कोर्ट कचहरी थाना मुकदमा पइसा हे त सुनाई
आम आदमी अउँट गे बाँटत-बाँटत अपन कमाई
सिधवा मनखे ल निचोड़ के पीययँ सबे विभाग…!
मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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