जंगल के जानवर के का होही

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                   जंगल के होते हे विनाश, 

         

                                    विचार

 हमर विकास के संगे-संग अउ बढ़त आबादी के संग मनखे मन रहे बर जंगल के नाश करत जात हे, जेखर ले सुग्घर जंगल के दिन ब दिन विनाश होवत हे, पहली के बेरा म थोड़कीं जगह म सब्बो परिवार के मनखे मन एक संघ बढ़ सुग्घर ले रह लेवय, अउ रुख राई ल घलोक तीर-तखर म जगावय, फेर अभी के बेरा म सहर म रहे बर जगह नइ बाचत हे कइके अब मनखे ह सहर ल छोड़ के जंगल ल अपन आवास बनात जात हे, जंगल ल आवास बनात हे तेन तो ठीक हे, फेर मनखे ल सोचना चाहि के जंगल ल आवास बना के उहा रहे ले उमन ल कुछु हानि नइ होवय फेर जंगल म मनखे के बसे ले जंगल के रहइया जंगली जानवर मन बर रहे के जगह घलोक नइ बाचत हे,

तेखर सेती जंगल के जानवर मन जंगल ल छोड़ के सहर कोती भागे बर विवस होवत हे, अउ ओहि मनखे मन ल नुकसान पहुँचावत हे। तेखर सेती दूसर के रहे के जगह ल कब्जा करे ल ओखर ले होवइया विनास ल घलोक अपनाना चाहि, कोनो जंगली जानवर कोनो मनखे ल नुकसान पहुचाथे त ओ जानवर ह मनखे के घर- कुरिया भीतरी खुसर के मनखे ल हानि नइ पहुचाये, जब मनखे ह जंगल डहर अपन डेरा ल जबरन डाल लेथे त जानवर ह मनखे ल हानि पहुचाथे, अउ ये कोनो गलत गोठ नो हे, अगर कोनो ह दूसर जगह ले आ के कोखरो घर दुवारी ल कब्जा करहि त ओमा तो ओला परिणाम घलोक झेले ल लगही। त रोज- रोज के जानवर मन के मचात उत्पात के कारण ल समझे ल लगही अउ ओखर सुग्घर रददा निकाले ल लगही, तभे मनखे अउ जंगली जानवर दुनो ह बरोबर बांच सकही, नइ ते सबो ल येखर विनासक रूप ल देखे बर तईयार रहे ल लगही। 

                युवा कवि साहित्यकार
 अनिल कुमार पाली, तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़

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