सामाजिक कुरीतियां बकरा भात हमर समाज के कुप्रथा आये
कुरीति ल जनमत हे समाज के बकरा भात 'दाढ़ प्रथा'
हमर संस्करीति म कई ठन अइसने परंपरा हे जेन ह हमर समाज म पइठ दे के बइठ गे हे, अउ ये ह परंपरा नइ रही के समाज बर बड़े कुरीति अउ समस्या बनत जात हे, जेमा सबले बड़े एकठन कुरीति हे दाढ़(दंड)प्रथा, कोनों गलती बर दाढ़ तो देना बने हे फेर सब्बो गलती बर कुछु भी दाढ़ नइ दे सके,अउ देथे तभो ले ओखर नियम घलोक होना चाहि जेन म समाज के सब्बे मनखे ल एक बरोबर समझे ,अउ येही प्रथा ल हमर संस्कृरीति म अभी के बेरा म कई ठन समाज घलोक अइसने हे जेन मन ह दाढ़ के प्रथा ल आघु बढ़ात हे, अउ ओला अपन समाज के सम्मान समझथे, जेखर कोनो नियम कानून घलोक नइ होवय ।
समाज के बड़े पदाधिकारी मन अपन मन ले कोनो भी मनखे ल ओखर गलती बर दाढ़ देथे, जेमा समाज ले निष्कासन, बकरा भात जइसे दाढ़ दे जाथे, अउ कोनो ल रूपया-पइसा दाढ देथे त कोनो ल नरियर दाढ़ म दे ल लगथे जेन ह हमर भारत के कानून के देखे म घलोक अपराध हे तभो ले समाज परमुख मन अपन मन-मानी कर के समाज के मनखे ल अइसे सजा देथे, अउ दाढ़ देके बाद ओला पूरा नइ करे ले समाज ले बाहिर निकाला(बहिष्कार) घलोक कर देथे, जेखर ले ओ मनखे ह अपन कोनो सगा-संबंधी के घर घलोक नइ जा सके गोठ-बात नइ कर सके, अइसने परंपरा ले हमर आने वाला पीड़ी बर कुरीति ल अपनाये के नियम बनात जात हे, जेखर ले हमर समाज के विचार ह अउ खराब होत जाही,
समाज के कई मनखे मन गरीब परिवार ले होये के कारन दाढ़ ल नइ दे सकय, ता ओमन ल समाज ले निकाल देना कानून के देखे म घलोक अपराध हे, तबो ले दाढ़ प्रथा ह कइठन समाज म जम के बइठे हे, जेला बढ़त बेरा के संग समाज के मनखे मन आघु बढ़ावत घलोक हे। हमर समाज के बुता सब्बो मनखे ल एक संग जोड़ के रखना हे, अपन समझ के विकास करना हे, जेखर ले हमर आने वाला पीढ़ी ल इखर ले बने बात ल सीखे बर मिल सके, त हमर सब्बो संगी- संगवारी मन ल ये बारे म विचार करे ल लगही,
जय जोहार, जय छत्तीसगढ़
युवा कवि साहित्यकार
अनिल कुमार पाली,( छत्तीसगढ़ रत्न से सम्मानित)
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
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