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जोहार छत्तीसगढ़ |
छत्तीसगढ़ ल बने कइयों बछर पुर गे हे, तभो ले छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़िया मनखे ल अपन बोली भाखा संस्करीति बर लड़े ल पड़त हे, जिंहा देस म सब्बो मनखे ल कानूनी अधिकार मीले हे, लईका मन ल दाई के गोठ-बात के भाषा (मातृभाषा) म सिक्छा देना हे, तभो ले वोही देस के छत्तीसगढ़ राज म इंहा के सियान मन ल अपन मातृभाषा म सिक्छा के अधिकारी बर लड़ाई लड़े ल पड़त हे, सिक्छा के संगे-संग छत्तीसगढ़ के नंदावत संस्करीति ल बचाये बर छत्तीसगढ़िया मनखे ल होस नइ आत हे, काबर की छत्तीसगढ़ के तिहार संस्करीति ल जब तक हमर नवा लईका मन नई अपनाही नइ चिन्ही नइ तब तक वोला कोनो नई बचा सकें, इंहा सियान कतको लड़ाई लड़त रही, फेर सियान मन के संग उखर लड़ाई घलोक सिरा जाथे, अपन भाषा अउ संस्करीति ल बचाये बर सियान मन के संग्गे-संग छत्तीसगढ़ के लईका मन ल घलोक अपन भासा संस्करीति बर लड़े ल पड़ही, अभी के कलयुग के बेर म कोनो पुरखा ह दुबारा जीवित नइ होवय, के दूसरइया बार घलोक छत्तीसगढ़ बर लड़े,
हमर पुरखा मन अपन बुता ल कर के चल दिन अब उमन ह नवा लईका ले आस लगा कि रखें होही के हमर बीते के बाद नवा लईका मन कुछु बदलाव लाही कइके, फेर नवा लईका मन समझत नइ हे, दूसर के बहकावा म बहके हे अउ अपन जुन्ना पुरखा ल घलोक भुला गे हे, आज के कलयुग म फेर हमर जुन्ना पुरखा, वीर नारायण सिंह, बाबा गुरुघासीदास, खूबचन्द बघेल, बैरिस्टर छेदी लाल, पंडित सुन्दर लाल शर्मा, अउ हमर सब्बो पुरखा अब लउट के नइ आये, हमी मन ल नवा करेजा म नवा आगि भर के पुरखा मन के रददा म रेंगे ल लगही तभे अपन माटी के करजा ल जीयत ले छूट सकबो, नइ तो मरे के बाद कुकुर घलोक नइ पूछे,
युवा कवि साहित्यकार
अनिल कुमार पाली, तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
मो. न- 7722906664
1 Comments
बह सर
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