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मजदूर दिवस |
मैं मजदूर हूँ
पसीने का नमक बना कर, किस्मत चमकाता हूँ।।
हाथों की लकीरों को रोज मैं मिटाता हूँ।।
हर निर्माण में जी-जान अपनी लगता हूँ।।
मिट्टी से महल मैं ही बनाता हूँ।।
मिट्टी को मल कर आकार मैं बनाता हूँ।।
सभी वस्तुओं को उपयोगी मैं ही बनाता हूँ।।
मैं मजदूर हु, पसीना रोज बहाता हु।
लंबी-लंबी दूरियों में पैदल ही चला जाता हूं।।
समाज का सारा बोझ अपने कंधे में उठाता हूँ।।
मेहनत ईमानदारी के पैसे से सुखी रोटी खाता हूं।।
अपनी कुटिया को अपना महल मैं बताता हूँ।।
मैं मजदूर हु सुखी रोटी खाता हूं।
जात-पात का भेद न करता सब के काम आता हूं।।
कचरे से कोयला तक हर चीज़ मैं उठता हु।।
खुद अंधेरे में रहता हूं, सब को रोशन कर जाता हूं।।
सूरज की पहली किरणों के संग सब को मैं जगाता हु।।
मैं मजदूर हु जनाब, सब को काला नज़र आता हूं।
युवा कवि साहित्यिक
रचना- अनिल कुमार पाली,तारबाहर बिलासपुर
मो.न:-7722906664
मो.न:-7722906664
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