पिये बर दारू भईया मनखे मनखे उपर झपावत हे, कवि-अनिल जाॅगडे

  


पिये बर दारू भईया

महमारी ये कोरोना ल, आज कोनो नइ डरावत हें।
पिये बर दारू भईया, मनखे-मनखे ऊपर झपावत हें।।

दारू के चक्कर म मनखे, किरा घोघी असन सकलाये।
कतका बडखा बिमारी देख, फेर ककरो जीव नई डराये।।

नियम कानून ल कोन पुछय, सो.डिस्टेस के धजिया उडावत हें।
पिये बर दारू भईया, मनखे-मनखे उपर झपावत हें।।

जान हे त जहान बर, परगे दारू ह भारी ।
काबर खोले दारू दुकान, कतको देवत हे गारी।।




वादा करे नशा मुक्ति के, अब घर-घर म बटवावत हें।
पिये बर दारू भईया, मनखे-मनखे उपर झपावत हें।।

लाॅकडाउन अऊ सो.डिस्टेसिंग के, जूर मिल के पालन करलव।
राक्षस कोरोना ल बाचे बर, थोकिन अऊ दुख ल सहलव।।

कतको ल खा डारिस बैरी, देख आँखी मोर भरावत हें।
महमारी ये कोरोना ल, आज कोनो नई डरावत हें।।


पिये बर दारू भईया, मनखे-मनखे उपर झपावत हे।
मनखे-मनखे उपर झपावत हे ।।

अनिल जाॅगडे सरगांव मुंगेली



मैं अखबार हु जनाब हर रोज बदलता हु।
कविता-अनिल कुमार पाली
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