कहाँ जाबे मीत…!!
कहाँ जाबे मीत मउत ले बच के…!
कोनो जाही चट-पट कोनो पच-पच के…!!
बिन दसना खटिया म सुतबे कलपबे
मरे बर सुमिरबे तभो ले तड़पबे
सुध-बुध के सुरता गम नई पाबे
कब गिला करबे कब तैं सनाबे
आँखी निहाँरही खँचवा म धँस के…!
कोनो जाही चट-पट कोनो पच-पच के…!!
हाड़ा के ढाँचा म चटक जाही चमड़ी
चलही न जांगर न काम आही दमड़ी
सुनबे न गुनबे न कोनो ल चिनबे
पीबे न खाबे उठबे न घूमबे
मैंना किंदरही नाँव रट-रट के…!
कोनो जाही चट-पट कोनो पच-पच के…!!
जीयत भर स्वारथ के चक्कर म उलझे
आने के उन्नति म जरे अऊ झुलसे
कहत रहे जीवन भर ये मोर ये तोर
मोर तोर कहि-कहि के टोरे मया के डोर
लूटे सकेले छल कर बँच-बँच के…!
कोनो जाही चट-पट कोनो पच-पच के…!!
परमारथ मया सृषटी के गुन आय
हित मीत के मया ल मानें के धुन आय
मानुष के चोला मानुष के मन ल
काबर सनाए बुद्धि चिंतन ल
जीवन गुजारौ भाई जम्मो सध-सध के…!
कोनो जाही चट-पट कोनो पच-पच के…!!
जोहन भार्गव सेंदरी बिलासपुर
७९७४०२५९८५
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