पाके अरमपपाई कस, छत्तीसगढ़ी कविता रचनाकार जोहन भार्गव जी सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

 

पाके अरमपपाई कस…!!


पाके अरमपपाई कस मिठाथे अबड़  जवानी ओ …!
अँचरा म गठिया के धर ले गुरतुर प्रेम के बानी ओ…!!

हवा झुलावै फूल कली ल महक साँस म घोरै नसा
काया छोड़ के जावै बचपन देके तन म मादकता
चंदा ल चकोर निहारै आँखी ह निंदिया रानी ओ…!
अँचरा म गठिया के धर ले गुरतुर प्रेम के बानी ओ…!!

सावन के भावन मौसम तैं जाड़ के रात रजाई अस
पलपला आँच म चूरे अंँउटे निमगा दूध मलाई अस
उज्जर मुंँह के ललहूँ ओंठ ताजा संतरा के चानी ओ…!
अँचरा म गठिया के धर ले गुरतुर प्रेम के बानी ओ…!!

जीव रूख धरती के ऊंँकरो फूले फरे के समै रथे
समै आए म भौंरा फूल के रस पिए म रमे रथे
बिजली चमकै बादर बरसै गिरै समै म पानी ओ…!!
अँचरा म गठिया के धर ले गुरतुर प्रेम के बानी ओ…!!

 जोहन भार्गव सेंदरी 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

७९७४०२५९८५



Post a Comment

0 Comments