कोरोना काल मजदूर मनखे मन के जी के जंजाल होंगे, ठोकर खाये बर हवय मजबूर

कोरोना काल मजदूर मनखे मन के जी के जंजाल होंगे दरबदर के ठोकर खाये बर हवय मजबूर- शैलू ठाकुर जिला संयोजक छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना बिलासपुर


अनिल कुमार पाली

बिलासपुर। जब से हमारे देश मे कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन हुवा है, तब से पूरा देश घर में कैद हो गया है घर में कैद होने के बाउजूद लोगों में कोरोना के प्रति जागरूकता निरंतर बानी हुई है सभी एक-दूसरे को घर में रहने, सेनेटाइजर का उपयोग करने, साबुन से हाथ धोने की सलाह दे रहे है, और लोगो को अपने खुद की जान की परवाह इतनी है कि जरूरी कार्य को छोड़ कर कोई भी घर से बाहर जाने से स्वयं ही बच रहा है। इन सब परिस्थितियों में चाहे कोई सामान्य व्यक्ति हो या सरकार सब इस बात को भूल गए कि कोरोना से ज़्यादा बड़ी बीमारी भारत में भुखमरी है जिसकी चपेट में भारत के 30 प्रतिशत गरीब मजदूर वर्ग आएगा, उनको तो इस बात की खबर ही नही थी कि जो जहाँ है उसको वहीं रुकने का आदेश इस लिए दिया गया है ताकि कोरोनो वायरस फैले न, लेकिन कोरोनो वायरस फैलने से पहले इन लोगो में भुखमरी बेचैनी फैल गई। इस बेचैनी भरी भूख के साथ 21 दिन तो कैसे भी कट गए, लेकिन उसके बाद अपने आप को पूरे परिवार के साथ कंही बहार ऐसी जगह कैद कर के रख पाना जहाँ परिवार को भूख से तड़पा देखते बैठे रहें, उन मजदूरों को मंजूर नही था। इस लिए उस भूख को पेट में लिए और अपने देश का भविष्य कंधे में उठा कर निकल पढ़े हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा में, उस यात्रा में लोगो ने खाने को दिया पर ये बीमारी इतनी भयंकर है कि अपनापन किसी ने नही दिया, इस दर्द भरी स्तिथि में हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर अपने घर पहुँचे की आस में बस चल पड़े थे। इस यात्रा में हर एक मजदूर को अपनी मातृभूमि की उस मिट्टी की याद जरूर आई होगी, जिसे छोड़ कर दो रोटी की तलाश में दूसरे-दूसरे राज्य भटक रहें थे।




दुख तो इस बात का है कि एक छोटी सी बीमारी ने पूरे देश का हालात बदल कर रख दिया। और ये वही बीमारी है, जिसे किसी गरीब के द्वारा गंदगी-भुखमरी में रहते हुवे भी पैदा नही कर पाये, उस बीमारी को एरोप्लेन में बिठा कर हमारे देश मे लाया गया। लेकिन इसका पूरा दंश केवल और केवल माध्यम मजदूर वर्गों को उठाना पड़ा है।


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