का ए नवा बछर…??
खाएन-कमाएन अउ सुतेन हम आठों पहर…!
सब दिन एक बरोबर का ए नवा बछर…??
जांगर चलत ले सिरावै नहीं बुता कोनो के
भात-बासी म अघाई रहै आवक जम्मो के
थोरकिन थिरा लौ सुरता लौ पी लौ पानी पसर भर…!
सब दिन एक बरोबर का ए नवा बछर…??
खेत-खलिहान हमर उजड़गे सहरीकरन म
कारखाना के भेंट चढ़गे जड़ी-बूटी जीव वन म
घर घुरुवा कोठी कोठार नईं आही नजर…!
सब दिन एक बरोबर का ए नवा बछर…??
निच्चट गरीब बड़ अभागा होगे भविस के रद्दा
नव जुग म जंगल बनगे हीरा सोना के अड्डा
रूख-राई म चलै आरी जीव काँपत हें थर-थर…!
सब दिन एक बरोबर का ए नवा बछर…??
नवा बछर के नवा सोंच ल तियागा संगवारी
जुर-मिल के आवा सम्हाली जंगल खेत बारी
लीलत हवै मसीन मनुस के बगइचा कुआँ घर…!
सब दिन एक बरोबर का ए नवा बछर…!!
रचना- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर ७९७४०२५९८५
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