दूनों नयन ले धार बोहावै…!!
दूनो नयन ले धार बोहावै एक हंँसदो एक अरपा…!
हिरदय म सब दुख के ओगरा आँखी सबके धरसा…!!
धीरे-धीरे जम्मो बिछड़ गएन जिनगी निराधार
सुन्ना पन के बादर म आंँसू के बौछार
अब कोन हाथ पकड़ के कइही मैं तोर कर्ता-धर्ता…!
हिरदय म सब दुख के ओगरा आँखी सबके धरसा…!!
बिक्कट निरदई होथे गरीबी हाँसी नींद ल खाथे
मया के सुरता मन म रहिगे जम्मो झन तिरियागे
दंगर-दंगर जा मिल के आतेवँ बिन पनही बिन हरपा…!
हिरदय म सब दुख के ओगरा आँखी सबके धरसा…!!
कलपत-कलपत उमर पहाथे कब सुकुवा ऊही
जानें कोन दिन सुख के बरखा अंगना मोर भिगोही
गोंटकर्रा कस आँखी म अब आस दिखय न रद्दा…!
हिरदय म सब दुख के ओगरा आँखी सबके धरसा…!!
कवि- जोहन भार्गव
सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़
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