पोनी गटक पारेवँ
मैं भरोसा करके जम्मो झन मेर हारेवँ…!
दही समझ के पोनी गटक पारेवँ…!
बेटी बिहाएवँ घर वर निकहा मैं देख के
कमाई-धमाई सान-सौकत बढ़िया देख के
दमाद निकलिस कोलवा अपन माथा पटक डारेवँ…!!
दही समझ के पोनी गटक पारेवँ…!!
जेला देखबे तउने धोखा देवत हावय
ठगी अतिक्रमन करके हंडा भरत हावयँ
संगी तो संगी भाई कका ल टमर डारेवँ…!!
दही समझ के पोनी गटक पारेवँ…!!
दरूहा के दरूहा संगी गंजहा के गंजहा
सोंटयँ सुलोसन सीरप कोनो हे भंगहा
परहित के चक्कर म दाँत ल निपोर डारेवँ…!
दही समझ के पोनी गटक पारेवँ…!!
करगा कस सुरर के फेंकत हन सच्चाई ल
मेंटत हावन जान के जम्मो अच्छाई ल
पोल-पट्टी खोल के मया ल टोर पारेवँ…!
दही समझ के पोनी गटक पारेवँ…!!
शबरी कस भगतीन न भगत प्रहलाद हावैं
छलबिदरा मन घलो चिटिकन नईं लजावै
गोठे-गोठ म सिरतोन ल थोरकिन उंघार पारेवँ…!
दही समझ के पोनी गटक पारेवँ…!!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर
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