बन जा मया के अंजरी
मैं तोर बिन भाँठा के मछरी आ मोला पानी पीया दे…!
बन जा मया के अंजरी आ मोला पानी पीया दे…!!
मैं हर पियासा मरुस्थल तयँ प्रेम के ऊँचा हिमालय
तोर मन मया के ओगरा मोर हिरदय सुन्ना सिवालय
मोर बर तयँ जल-थल बदरी आ मोला पानी पीया दे…!
बन जा मया के अंजरी आ मोला पानी पीया दे…!!
मेला ठेला न बजार हाट न ठाठ-बाट फेसन भावय
न संगी साथी सुहावयँ बस तोरेच सुरता आवय
तोर अंग-अंग कलसा गगरी आ मोला पानी पीया दे…!
बन जा मया के अंजरी आ मोला पानी पीया दे…!!
मयँ बीस बछर के पियासा तोला देख के जागय आसा
हम जनम-जनम के जोड़ी एहू जनम मिलय झन निरासा
मोर दाना-पानी दोना-पतरी दाना-पानी खवा पीया दे…!
बन जा मया के अंजरी आ मोला पानी पीया दे…!!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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