छत्तीसगढ़ी कविता- बन‌ जा मया के अंजरी, कवि जोहन भार्गव जी।

 

बन‌ जा मया के अंजरी



मैं तोर बिन भाँठा‌ के मछरी आ मोला पानी पीया दे…!
बन जा मया के अंजरी आ मोला पानी पीया दे…!!

मैं हर पियासा मरुस्थल तयँ प्रेम के ऊँचा हिमालय
तोर मन मया के ओगरा मोर हिरदय सुन्ना सिवालय
मोर बर तयँ जल-थल बदरी आ मोला पानी पीया दे…!
बन जा मया के अंजरी आ मोला पानी पीया दे…!!

मेला ठेला न बजार हाट न ठाठ-बाट फेसन भावय
न संगी साथी सुहावयँ बस तोरेच सुरता आवय
तोर अंग-अंग कलसा गगरी आ मोला पानी पीया दे…!
बन जा मया के अंजरी आ मोला पानी पीया दे…!!

मयँ बीस बछर के पियासा तोला देख के जागय आसा
हम जनम-जनम के जोड़ी एहू जनम मिलय झन निरासा
मोर दाना-पानी दोना-पतरी दाना-पानी खवा पीया दे…!
बन जा मया के अंजरी आ मोला पानी पीया दे…!!

कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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