छँटेलहा चारा…!!
छाँटे चारा के धुन म छँटेलहा चारा पा गएवँ !
उज्जर उल्हवा भाजी के संग गोंटकर्रा चबा गएवँ !!
सुग्घर चेहरा सुग्घर ओनहा कीरा परय गुन दागी म
जेला सिधवा कहिथवँ ओही मनखे मुतथे आगी म
हीत-मीत के भेस म निरदई हत्यारा ल पा गएवँ !
उज्जर उल्हवा भाजी के संग गोंटकर्रा चबा गएवँ !!
सनन-सनन पथरा मारे कस बोली पीरा उभारत हें
मनखे ल मनखे नईं समझयँ जम्मे झन हुरियावत हें
करके भरोसा अइसन हपटेवँ भर्रस ले मैं गिर परेवँ !
उज्जर उल्हवा भाजी के संग गोंटकर्रा चबा गएवँ !!
प्रान जाए पर वचन न जाए तइहा ल बइहा ले गे
मन ल जीत के छोटे भाई के हक ल बडे़ भइया ले गे
लिखा-पढ़ी के जुग म घलो मैं फरजी लिखइया पा गएवँ !
उज्जर उल्हवा भाजी के संग गोंटकर्रा चबा गएवँ !!
कवि-जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़
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