छत्तीसगढ़ी कविता- छाँटे चारा के धुन म छँटेलहा चारा पा गएवँ, वि-जोहन भार्गव जी सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़

  छँटेलहा चारा…!!




छाँटे चारा के धुन म छँटेलहा चारा पा गएवँ !

उज्जर उल्हवा भाजी के संग गोंटकर्रा चबा गएवँ !!


सुग्घर चेहरा सुग्घर ओनहा कीरा परय गुन दागी म 

जेला सिधवा‌ कहिथवँ ओही मनखे मुतथे आगी म 

हीत-मीत के भेस म निरदई हत्यारा ल पा गएवँ !

उज्जर उल्हवा भाजी के संग गोंटकर्रा चबा गएवँ !!


सनन-सनन पथरा मारे कस बोली पीरा उभारत हें

मनखे ल मनखे नईं समझयँ जम्मे झन हुरियावत हें

करके भरोसा अइसन हपटेवँ भर्रस ले मैं गिर परेवँ !

उज्जर उल्हवा भाजी के संग गोंटकर्रा चबा गएवँ !!


प्रान जाए पर वचन न जाए तइहा ल बइहा ले गे 

मन ल जीत के छोटे भाई के हक ल बडे़ भइया ले गे 

लिखा-पढ़ी के जुग म घलो मैं फरजी लिखइया पा गएवँ !

उज्जर उल्हवा भाजी के संग गोंटकर्रा चबा गएवँ !!


कवि-जोहन भार्गव  जी

सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़



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