तीपत हावय जेठ मंझनिया…!!
नरी के आत ले पहिली भात ओकर बाद आने बात…!!
तीपत हावय जेठ मंझनिया सेंकय हवा के आंँच…!!
मुँह सुद्धि बर मिलय गुड़ाखू गोड़ धोय बर पानी
दुख-सुख फेर गोठियाबो बइठ के तउलबो जिंनगानी
हाल-चाल के चरचा म गोठियाबो कई जज़्बात…!
तीपत हावय जेठ मंझनिया सेंकय हवा के आंँच…!!
बिजली गुल हो जाही त चुचवाही तन ले पछीना
भभकय पक्का घर के खोली आँकय खटिया दसना
थोरकिन थिरा-जुड़ा के खोलिहवँ मन के जम्मो गाँठ…!
तीपत हावय जेठ मंझनिया सेंकय हवा के आंँच…!!
कहाँ ले सुरू करवँ संगी दुनिया के छल-छिद्र
मन हर दानी करन कस सोंचय मनखे निचट दरिद्र
जुआ म हारे असन मोर हालत गय जमीन-जायदाद…!
तीपत हावय जेठ मंझनिया सेंकय हवा के आंँच…!!
कवि - जोहन भार्गव सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़
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