माई भाखा के अँचरा…!!
माई भाखा के अँचरा, झन संग छोड़व संगवारी…!!
घाम छाँव ला गुने कहे बर महिमा एकर भारी…!!
दुलौरिन दाई के लोरी दुलार अंतस म समाइस
बहिनी भाई कुल सगा समाज के मया दया पाइस
ददा के खांद म बइठ के घूमेन मड़इ मेला फूल बारी…!
माई भाखा के अँचरा, झन संग छोड़व संगवारी…!!
आखर बोली बचन के बिरवा मन के सोभा बढ़ाथे
समै बादर म फूलथे फरथे भाव भूख मेटाथे
मीठ करू के जानेन सेवाद समझेन दुनियादारी…!
माई भाखा के अँचरा, झन संग छोड़व संगवारी…!!
इस्कूल कालेज के संगत म आन भाखा ल अधार मिलय
डोंहड़ू अकल के फूल कमल कस सुग्घर अउ छतनार बनय
जरई, जमीन ले जुरे रहे म गरब करयँ महतारी…!
माई भाखा के अँचरा, झन संग छोड़व संगवारी…!!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग) 7974025985
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