छत्तीसगढ़ी संस्करीति म गोदना परंपरा

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                छत्तीसगढ़ि संस्करीति म गोदना परंपरा


गोदना परंपरा

छत्तीसगढ़ी संस्करीति म चित्रकारी लोकाचार परंपरा म गोदान के अब्बड़ महत्म हे येला छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी संस्करीति सामाजिक-आर्थिक, धार्मिक सब्बो म बढ़ ख्याति मिले हे, अउ ये पीरा देवइया परंपरा ल सब्बो छत्तीसगढ़िया आदिवासी मनखे मन आजो बढ़ खुशी अउ जिम्मेदारी ले निभात आत हे, काबर की गोदना गोदवाना कोनो आसान बात नोहे, गोदना गोदाये के सौउख कराईया मनखे मन ल अब्बड़ पीरा सहेन करें ल लगथे काबर के गोदना ल गोदे बर देवारिन दाई मन सूजी ल कोचक के मास म होब के गोदना ल गोदथे, जेन ह मनखे के मरत तक ओखर देहे म चिन्ह बने रहिथे, अउ देह म अतना सुई होबो ले खून धलोक निकल जाथे, तेखर सेती गोदना गोदवाना हिम्मत के बुता हवय जेमा अब्बड़ पीरा सहे ल लगथे।

वइसे तो गोदना ल सब्बो मनखे मन गोदवाथे फेर येल मनखे ले जादा माई लोगिन मन पसंद करथे अउ अपन अंग म तरह-तरह के चित्र आकृति गोदवाथे, जइसे गाल, गला, ठोड़ी, हाथ, गोड अउ सब्बो अंग म गोदान गोदवाथे, जेन मा चिड़िया-चुरगुन जानवर मन के चित्र देवता-धामी के चित्र अब्बड़ महत्व रकथे,अउ ये गोदना के परंपरा ह हमर छत्तीसगढ़ के संस्करीति म अब्बड़ जुन्ना हे जेला आजो के बेरा म छत्तीसगढ़ के गांव-गांव म रहिया आदिवासी समाज के मनखे मन निभावत आत हे,

वइसे गोदना अउ बने अकन जाति मन के पारंपरिक चित्रकारी परंपरा हे फेर ये ह गोड़ जनजाति के मनखे मन ल अब्बड़ सुग्घर लागथे, अउ येही मन अपन गोदना के परंपरा ल बचा के राखे हे। गोदना के पौराणिक महत्म धलोक हे सियान मन कहिथे के गोदना के निशान ह मरे के बाद हाड़ा म घलोक पड़ जाथे जेन ह परलोज जाये के बाद मनखे के जियत भर के करनी ल जागरित करथे,अउ ओखर हिसाब किताब बताथे, फेर गोदना ल माई लोगिन मन के गहना घलोक कइथे जेला कभू कोनो ना चोरा सके नाही बेच सके अउ जियत ले मरत तक संग म रहिथे।

गोदना गोदाये के परंपरा



युवा कवि साहित्यकार
अनिल कुमार पाली, तारबाहर बिलासपुर
मो.न- 7722906664

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