जनम देवईया महतारी


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                 कविता
जनम देवईया करम लिखईया
माटी हमर महतारी ये
पाप पुन्य अऊ करम धरम के
सरग  के  दुवारी  ये
माटी हमर महतारी ये, माटी हमर महतारी ये

ऐकर कोरा म उपजेन बाडेन
जम्मो सुख ल पावत हन
दाई अंचरा छाव म बैइठे
जीनगी सुघ्घर बितावत हन
अन्न जल के पुरती ल करथे
जग के पालन हारी ये
माटी हमर महतारी ये, माटी हमर महतारी ये

दाई के कोरा म खान हे कतका
हीरा मोती सोन भरे हे
जतन करले ये भूईया के
जम्मो सुख भरे हे
सुख दुख के संग देवईया
जीनगी के संगवारी ये
माटी हमर महतारी ये, माटी हमर महतारी ये

जनम धरेन ऐकर कोरा म
धरती दाई के सेवा बजालव
मोल चुकालव ये माटी के
फर्ज ल अपन चुकालव
जग जलनी हे ममता माई
सरग के दुवारी ये
जनम देवईया करम लिखईया
माटी हमर महतारी ये
पाप पुन्य अऊ करम धरम के
सरग के दुवारी ये
माटी हमर महतारी ये, माटी हमर महतारी ये
  जय छत्तीसगढ़ महतारी
 

कवि-अनिल जाॅगडे
पता- भैंसबोड, बिल्हा- बिलासपुर


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