कवि- अनिल जाॅगडे, हम मनखे के जात



          हम मनखे के जात



तय सुरज हम मनखे के जात
हमर सामने तोर कहे अवखात

तय काबर अतका पावर दिखावत हच
आगी कस अंगरा  काबर जरत हच
फेर तोर ल हमन कम नईयन
तोर अईसन गरमी ल बाचे बर
पेप्सी कोला ठण्डा शरबद पियत हन



तय देखाले जतका देखाना हे पावर
फेर हमन तोला कब डराये हन
तोर गरमी ल बाचे बर फ्रिज ऐसी
कुलर पहली ल बना के राखे हन
तोर गरमी म धरती भूईया सुखागे
अब सुन सूरज हमर मनके बात
हमर सामने तोर कहे अवखात

मनखे ल जतका इतराबे गुराबे
हमन नवा नवा खोज करबोन
चाँद  म  हमन  चढ़  गेहन
एक दिन तोरो ऊपर चढबोन
सहे  बैईठे  हन  हमन  तोर
सर्दी  गरमी  अऊ  बरसात
फेर हमर सामने तोर कहे अवखात
     
 कवि- अनिल जाॅगडे, सरगांव (मुंगेली)

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