कविता मैं सीधा छत्तीसगढ़िया अउ का चाही, रचनाकार जोहन भार्गव सेंदरी बिलासपुर

 मैं सीधा छत्तीसगढ़िया…!!


मैं सीधा छत्तीसगढ़िया अउ का चाही…!

चलत हे गुजारा बढ़िया अउ का चाही…!!


माटी के हे घर दूरा खपरा के छानही

गरमी बरसात पागा धोती अउ पनही

रांधे बर तेलाई हँड़िया अउ का चाही…!

चलत हे गुजारा बढ़िया अउ का चाही…!!


बीपीएल के कारड म महिना भर के रासन

अब तो दारू घलो बेचत हे हमर सासन

दुख, न बिहाने रथिया‌ अउ का चाही…!

चलत हे गुजारा बढ़िया अउ का चाही…!!


मेहनत मजूरी करके ओनहा बिसाथौं

लईकन ल सरकारी इसकुल म पड़हाथौं

ऊँहों चलथे सुरपुटसैया अउ का चाही…!

चलत हे गुजारा बढ़िया अउ का चाही…!!


गाय भेंड़ी छेरी पसुपालन पिछुआगे

खेती-खार म बस्ती बस गे चारा नंदा गे

अलग-बिलग ददा-भईया अउ का चाही…!

चलत हे गुजारा बढ़िया अउ का चाही…!!


अनाचारी दुनिया के मैं बपुरा मनखे

सई‌ के जीना मजबूरी कइसे जियवँ तन के

पापी मन के ता-ता-थइया अउ का चाही…!

चलत हे गुजारा बढ़िया अउ का चाही…!!



जोहन भार्गव 

सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

७९७४०२५९८५

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