(छ.ग) जात के ठेकेदार मन…!!भाग (२)
जात-जात ल बाँटे हावैं जात के ठेकेदार मन…!
अनकटार लैं डाँड़ अउ पइसा खात हें ठेकेदार मन…!!
सिक्छित बन संग-संग रहौ सुख-दुख म काम आय करौ
गिरे परे संगी भाई बंधु मया सगा बर उपाय करौ
“संघे शक्ति कलियुगे” संगठन म रहना सीखौ सब
जुरमिल के संग रेंगे बर जुरमिल के रहना सीखौ सब
गरीबी के नाप म निचट गरीब होवत हावन दिनों-दिन
पण्डित पण्डा ठेकेदार मन झटकत हावैं दिनों-दिन
कुटुम्ब जन मेर हावै अरजी मुखियावाद ल अब छोड़ौ
जइसन करनी तइसन भरनी अइसन सोंच के सब जियौ
पइसा के किम्मत बड़ भारी मेंछरात हें ठेकेदार मन…!
अनकटार लैं डाँड़ अउ पइसा खात हें ठेकेदार मन…!!
जागा समाज मयारूक संगी ठेकादारन ल बिदा देवौ
सुख-दुख म उँचनीच घलो म खुद समझौता करे करौ
परिवारिक विवाद ल भाई मन परिजन संग सुलझा लौ
ठेकादार मन बिकट छली हे पद ले तुरत निकालौ
तुँहरे डाँड़ के पइसा म बेवपार अपन कई गुना करिन
कब समाज के मनखे मन बर ईमन मया अउ मदत करिन
छिहत्तर साल के आजादी गुलाम असन इन रखे हवैं
बहिष्कार अउ डाँड़ के फांदा सब के टोंटा म धँसे हवै
लिलत बनै न उगल सकी न मरत हावन न जिंदे हन
इन महावत हम सब हाँथी ईंकरे साँकर म बंधे हन
समाज के हाँथी ल अंग्ठी म नचात हें ठेकेदार मन…!
अनकटार लैं डाँड़ अउ पइसा खात हें ठेकेदार मन…!!
जोहन भार्गव
सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
७९७४०२५९८५
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