दारू म बूढ़े छत्तीसगढ़ के अदलहा मनखे- कवि- जोहन भार्गव जी सेंदरी बिलासपुर

 

दारू म बूड़े मनखे

दारू म बूड़े अदलहा मनखे…!!
नस म घुरे दारू मतौना दउड़त हे टेड़ुवावत हे…!
दारू म बूड़े अदलहा मनखे जम्मो ल हुरियावत हे…!!

लहु म कहाँ सरम अउ पानी
बाँचिस नहीं जवानी
नींद हजागे जांगर सिरा गे
घिसलत हे जिनगानी
माई कड़ेरी म घुना लगे हे भिथिया घलो बोजावत हे…!
दारू म बूड़े अदलहा मनखे जम्मो ल हुरियावत हे…!!

दारू बिना अंगठी सब काँपै
गोड़ घलो थरथरावै
मुँह म मौनी बाबा समावै
बुद्धि ल लकवा मारै
मुर्छित देह ल टुकुर-टुकुर कर आँखी भर है जियावत हे…!
दारू म बूड़े अदलहा मनखे जम्मो ल हुरियावत हे…!!

कइसन जुग आय कइसन जमाना
सराफत खोजे नई मिलै
तलाव तलाव म कचरा फेंकावै
खोखमा कमल नई खिलै
घर के हिम्मत बुता छोड़ के पी-पी के बोमियावत हे…!
दारू म बूड़े अदलहा मनखे जम्मो ल हुरियावत हे…!!

कलजुग के तीरथ सब भट्ठी
दारू भगत ठुढ़ियावैं
होस के जात ले पइसा सिरात ले
दारू म चोला बुड़ावै
कहाँ सुआरी कहाँ के लइका सब के भविष बोहावत हे…!
दारू म बूड़े अदलहा मनखे जम्मो ल हुरियावत हे…!!

जोहन भार्गव
सेंदरी बिलासपुर



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