कत्तेक दुख ल सहि के जीयत हाववँ…! गोरसी कस आँच म सेंकावत हाववँ, कवि- जोहन भार्गव जी

 

रोज सेंकावत हाववँ


कत्तेक दुख ल सहि के जीयत हाववँ…!
गोरसी कस आँच म सेंकावत हाववँ…!

बचपन म दाई-ददा ले दूरिहा होगेवँ
भउजी-भइया के मूड़ के मैं बोझा होगेवँ
दू पथरा के पाट म चिक्कन पिसाववँ…!
गोरसी कस आँच म सेंकावत हाववँ…!!

ले-दे के मोर गियारवीं तक पड़हाई
उमर भर भइया-भउजी दूनों के ठेंसाई
निरपराध हौं त भो ले तड़पत हाववँ…!
गोरसी कस आँच म सेंकावत हाववँ…!!

आई-टी-आई के टेरनिंग ददा कराइस
निचट गरीबिन दसा म घलो पड़हाइस
दाई-ददा के दम म पनपत हाववँ…!
गोरसी आँच म रोज सेंकावत हाववँ…!!

भउजी करिया डोमी बनके फूसनथे
कच्चा सूरन कांदा असन उसनथे
बिहि पत्ती कुरमा संग डबकत हाववँ…!
गोरसी कस आँच म सेंकावत हाववँ…!!

दया के मार ह हाड़ा तक जनाथे
पीरा लहू के संगे-संग बोहाथे
आँसू सुखागे त भो ले रोवत हाववँ…!
गोरसी कस आँच म सेंकावत  हाववँ…!!

कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़

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