(होली गीत)
एसो फागुन पुन्नी…!!
एसो फागुन पुन्नी के दिन अइसन होली मनाहूँ…!
काम क्रोध छल कपट के पेड़ अउ जरी सुलगाहूँ…!!
जुग बितगे कई सदी पहा गे लकड़ी ल जलावत
मनखे दुराचारी बनत हे आन के दोष गिनावत
ये कुरीत ल महीं बदलिहवँ अपन अकड़ जलाहूँ…!
काम क्रोध छल कपट के पेड़ अऊ जरी सुलगाहूँ…!!
बिक्कट पावन धरती मैया पाप अधम के वास
जड़ी-बूटी फल फूल अन्न अउ पानी हवा म घात
पूंजीवादी कुटिल बेवस्था ल मैं सबक़ सिखाहूँ…!
काम क्रोध छल कपट के पेड़ अऊ जरी सुलगाहूँ…!!
मैं न चले दवँ चौसर पासा चीरहरन के घटना
जउन इतिहास ल दोहराही पड़ही भुगतना
जेकर मुँह म दस चरित्र हे सही-सही ल देखाहूँ…!
काम क्रोध छल कपट के पेड़ अऊ जरी सुलगाहूँ…!!
नरी के आत ले नसा म बुड़ गे हर जवान मनखे
गाल चटक के भीतर धँस गे छाती म पक्ती दिखथे
नसा मुक्त जन-जन बन जावय अइसन अलख जगाहूँ…!
काम क्रोध छल कपट के पेड़ अऊ जरी सुलगाहूँ…!!
एसो फागुन पुन्नी के दिन अइसन होली मनाहूँ…!
काम क्रोध छल कपट के पेड़ अऊ जरी सुलगाहूँ…!!
जोहन भार्गव सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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