भेंड़ी मन के भीड़ ओमा बिघवा मन के राज- छत्तीसगढ़ी कविता कवि जोहन भार्गव जी।

 भेंड़ी मन के भीड़…!!




भेंड़ी मन के भीड़ ओमा बिघवा मन के राज…!

मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!


गंजहा दरूहा मनखे मन के दम म जिता चुनई 

भगनहा मेर अँइठा पइसा जम के करा कमई 

ओमेर लेप लगावा जेन मेर न पीरा न खाज…!

मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!


बाढ़े लइकन खोखसी मछरी चिखला म सनायँ

अउ समाज के केंवटा मन फरी पानी म मिलायँ

पागी छोर के भागयँ चउखट लांघ के आज…!

मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!


दाई ददा ल देखव जा के अपने म भुलाय रथे

लइकन आवय कतको बेर चाहे कहूँ जाय कथे

मोबाइल सत्यानासी बंद करा दिस मेल-मिलाप…!

मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!


भेंड़ी मन ल काटय कसाई जउन गड़रिया

धन के जोर म मुखिया बन गे अइसन बहरुपिया 

कई झन जात बदल के जात म करयँ आघात…!

मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!


कोर्ट कचहरी थाना मुकदमा पइसा हे त सुनाई 

आम आदमी अउँट गे बाँटत-बाँटत अपन कमाई 

सिधवा मनखे ल निचोड़ के पीययँ सबे विभाग…!

मुड़ी गड़ाये रेंगय…गड़रिया समाज…!!


 कवि- जोहन भार्गव जी

सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


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