मैं सुतवँ नींद भर…
मुड़सरिया बर जांघी दे आज…मैं सुतवँ नींद भर…!
का रथिया मंझनिया का सांझ…मैं सुतवँ नींद भर…!!
जिनगी पहाएन भुगत के
उम्मर भर बूता म खट के
जाए के बेरा म अब का लाज…मैं सुतवँ नींद भर…!
का रथिया मंझनिया का सांझ…मैं सुतवँ नींद भर…!!
दू खोली के घर नानक खेत
होइस नहीं दाई लछमी मेर भेंट
जीवन भर दुच्छा रहिगे मोर हाँथ…मैं सुतवँ नींद भर…!
का रथिया मंझनिया का सांझ मैं…सुतवँ नींद भर…!!
धोखा कपट लबारी ले बाँचेवँ
झन पातिन कोनों दुख यही सोचेवँ
जम्मे पीरा जुड़ावय मोर साथ…मैं सुतवँ नींद भर…!
का रथिया मंझनिया का सांझ…मैं सुतवँ नींद भर…!!
कवि - जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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