फागुन बीन मयारू के
फागुन बीन मयारू के
फागुन म सब फाग गीत गुनगुना थे..।
रंग-गुलाल खीसा म धरे-धरे..।,
एक-दूसर ल रंग लगाथे..।
संगी-संगवारी मन नाचत-गावत होरी मनात हे..।
अंगना म आगी बार के..।
दाई मीठ-मीठ पकवान बनाथे..।
तैं कहाँ लुकागे हस मोर चंदा रानी..।
तोला रंग लगाये बर मोर मन ललचाथे..।
धमक-धमक बाजत नंगड़ा-बाजा के धुन ह..।
तोर बर मया के गीत सुनावत हे..।
रही-रही के मोला घेरी-बेरी
रंग गुलाल ह तोर सुरता देवता हे..।
बइठे-बइठे तोर रददा जोहत..।
माहुर कस नसा मन ल मतात हे..।
तैं कब आबे मोर मयारू..।
तोला रंग लगाये बर मोर मन ललचात हे..।
युवा कवि साहित्यकार
अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर
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