मैं टेटका कस मनखे!
मैं टेटका कस मनखे, अदरउली ल हुर्रियाहूँ का!
जेन जघा म बसथवँ ओला छोड़ कहूँ मैं जाहूँ का!!
इन बगइचा ईंकरे छाँव म जीवन मोर पहा जाही
मोरो पेट म दू मूठा मोर लइकन सीथा पा जाही
जेन तलाव के पानी पी हूँ पानी ल मतलाहूँ का…!
मैं टेटका कस मनखे अदरउली ल हुर्रियाहूँ का…!!
करिया भुरुवा बिच्छी पुछी म काँटा जहर धरय
छय दिन म निपटाहूँ कहिके छय बुंदिया मन घुमयँ फिरयँ
आसे-पास के जहरीला जीव-जंतु ल कल्लवाहूँ का…!
मैं टेटका कस मनखे अदरउली ल हुर्रियाहूँ का…!!
तुहँरे रंग म रंग जातेवँ फेर जहर कहाँ ले लाहूँ मैं
आन के बछरू ल छटारा मारवँ नईं कर पाहूँ मैं
दया-मया ले भरे करेजा म काजर लगवाहूँ का…!
मैं टेटका कस मनखे अदरउली ल हुर्रियाहूँ का…!!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़
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