बन के मयारूक धोखा देना सीख गें सब। कवि जोहन भार्गव जी की छत्तीसगढ़ी कविता

 

बन के मयारूक धोखा देना…!!



बन के मयारूक धोखा देना सीख गें सब…!
कहाँ बोचक के भाग के जाबे दुख ले अब…!!

सादा सिधवा बन के रहना कठिन बिकट
हाँथ झटक लयँ संग छोड़य जब आवय बिपत
हीत-मीत संग-संगवारी नईं चिन्हयँ अब…!
कहाँ बोचक के भाग के जाबे दुख ले अब…!!

बड़ पियास रुपिया-पइसा के कंठ सुखाय
लोभ के लौ म जेला देखबे ओही झपाय
नीत-अनीत के फरक कोनो नईं समझयँ अब…!
कहाँ बोचक के भाग के जाबे दुख ले अब…!!

पथरा लहुट गे मया-स्नेह के नारी अहिल्या
मरयादा जंगल म भटकय रोवय कउसिल्या
कपटी त्रिस्ना काँटा बोवय जन-जन म अब…!
कहाँ बोचक के भाग के जाबे दुख ले अब…!!

कतेक जगावय जोहन सूतयँ लइकन कस
भिनसरहा के नींद कहाँ के टस-ले-मस
चक-चक ले अंजोर जगत म मन म तमस…!
कहाँ बोचक के भाग के जाबे दुख ले अब…!!

कवि- जोहन भार्गव,
सेंदरी- बिलासपुर (छत्तीसगढ़)



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