दाई-ददा लइकन बर होथे कुम्हार…!!
दाई-ददा लइकन बर होथे कुम्हार…!
गीली सुक्खी माटी ल गड़हय अकार…!!
बरगद के बीजा नांदय कोख म
अंकुर खुद बाड़हय अपने खोज म
देखते-देखत ले थे भारी विस्तार…!
दाई-ददा लइकन बर होथे कुम्हार…!!
गीली सुक्खी माटी ल गड़हय अकार…!!
डैना पोठावत ले तोरा अउ फिकर
खोंधरा ल छोड़ के उड़ावय जी भर
आजा मैना सुआ झन होवय मुंधियार…!
दाई-ददा लइकन बर होथे कुम्हार…!!
गीली सुक्खी माटी ल गड़हय अकार…!!
कोख एक आवा पकय अंग-अंग
आनी-बानी के जीनिस सिरजय संग-संग
कोनो गुनी ज्ञानी कोनो निचट अनसुहार…!
दाई-ददा लइकन बर होथे कुम्हार…!!
गीली सुक्खी माटी ल गड़हय अकार…!!
मोर खने माटी ओला छाँटिहवँ निमेरिहवँ
देखे लाइक मूरत बना के सजाहवँ
जउने देखय लागय ओला ओकरे चिन्हार…!
दाई-ददा लइकन बर होथे कुम्हार…!!
गीली सुक्खी माटी ल गड़हय अकार…!!
-जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़
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