मिलबो-जुलबो जाबो-बलाबो…!!
मिलबो-जुलबो जाबो-बलाबो…!
हीत-मीत अउ मया बढ़ाबो…!!
रोटी-बेटी बर फिरका देखथन
मिले-जुले बर धन अउ चीज
पुरखउती ले आत-चलत हे
ऊँच-नीच के दोखहा रीत
जभे बीच के भिथिया गिराबो…!
हीत-मीत अउ मया बढ़ाबो…!!
कुल चरित्त ले भागे कइना
बहु नहीं वो कलंक समान
लछमिन बनहिं लटपट दू झन
सब बिच्छी के डंक समान
समाज ले अइसन दाग मेटाबो…!
हीत-मीत अउ मया बढ़ाबो…!!
दुख-सुख जम्मे झन के ऊपर
हिरदय ले बनबो संगवारी
करके भरोसा हिम्मत बाड़हय
कठिन बिकट हे दुनियादारी
सगा-सगा के भेद डहाबो…!
हीत-मीत अउ मया बढ़ाबो…!!
मिलबो-जुलबो जाबो-बलाबो…!
हीत-मीत अउ मया बढ़ाबो…!!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़।
0 Comments
अपने विचार सुझाव यहाँ लिख कर हमें भेजें।