सामाजिक कुरुति या तो अभिशाप बन जाती है या कठोर नियम दोनों ही स्तिथि में समाज को इसका दुष्प्रभाव झेलना पड़ता है।

 

सामाजिक कुरुति या तो अभिशाप बन जाती है या कठोर नियम दोनों ही स्तिथि में समाज को इसका दुष्प्रभाव झेलना पड़ता है।



सभी समाज में समाज को एकजुट करने के लिए कुछ सामाजिक नियम बनाये जाते है, जिससे समाज के लोगों को आपस में जुड़े रहने के लिए प्रेणना मिलती है, परतु कुछ सामाजिक नियम इतने कठोर होते है कि जिसका पालन समाज के हर व्यक्ति के द्वारा नही किया जाता है, इसके साथ ही सामाजिक नियम के आड़ में कुछ लोग समाज के अन्य लोगों का शोषण करने का कार्य करते है, जिससे समाज में जुड़े लोग समाज के प्रति अच्छी भावना नही रख पाते।
इन सभी समस्याओं को ध्यान में रख कर सभी समाज के मुख्य पदाधिकारियों को समाज में बने नियमों का समय-समय में परीक्षण करते रहना चाहिए और आवश्यक होने पर नियमों में बदलाव करते रहना चाहिये जिससे समाज के लोगों को सामाजिक नियम के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकें, इसके साथ ही समय के साथ जिस नियम की आवश्यकता नही हैं उसे सर्वसम्मति से बदल देना चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी भी समाज में बराबर ही हिस्सदारी रख सकें।

युवा कवि साहित्यकार
अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
मो न:- 7722906664

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