छत्तीसगढ़ी कविता-एसों के नागपंचमी, कवि जोहन भार्गव जी की कविता।

एसों के नागपंचमी…!!


भगवान नाग देवता तुहँर बिख ल अउ बिखहर करय…!!
रोज गोज भरय गोज छूटय अउ चमड़ी ल उज्जर करय…!!
जहर के थैली कभू अँटावय झन जल-थल भरे रहय…!!
जहर के बत्तीसों दाँत जिनगी के पहात ले जघा म खड़े रहय…!!

तुहँर दाँत अउ आँत उम्मर भर अइसने दम दय…!!
जेला चाबा ओहर चिटपोट करे बिना उप्पर रेंग दय…!!
कहाँ के अस्पताल अउ गुनिया कहाँ के बइगा…!! 
अत्तेक समये झन मिलय के खुल जाय साँस के फइका…!!
बुढ़ापा के बाद फेर एक पइत आरुग लइका हो जावा…!!
समाज ल नरक म भेजे बर जुर-मिल के फेर धक्का लगावा…!!

समाज जाय भाड़ म नागपंचमी के जोहार भेजव…!!
अंतस के जहर ल सल्लग रोपव लूवव अउ बेचव…!!
समाज ले जहर मेटाही कइसे मोला संसो रथे…!!
जहर कखरो भीतर रहय एला मेटे चाही मोर मन कथे…!!

आवा कला गउँटिया मन अपन गोज जहर अउ दाँत ल निकाली
कम से कम एसों के नाग पंचमी ल अइसने मना ली…!!

(समाज के जम्मो बिखहर साँप ल नागपंचमी के बधाई) 

कवि- जोहन भार्गव जी 
गड़रिया समाज सेंदरी बिलासपुर छत्तीसगढ़

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