प्रेम छुए टमरे के सउख !!
प्रेम छुए-टमरे के सउख, मिलभेंट करे बर जावा झन !!
ये अंग-अंग के सरसरी ए कोनो ल उकसावा झन…!!
मिलय देखे म आँखी ल सुख
अनछुए सरीर ल छुए म सुध
कुवाँरी काया के अंजोर ल फूँक मार के बुतावा झन !
प्रेम छुए टमरे के सउख, मिलभेंट करे बर जावा झन !!
डुहरु असन फूलव छतनार
मन भर बगरय तुहँर नार
महमहाय के उमर म एको फूलपान छरियावा झन !
प्रेम छुए-टमरे के सउख, मिलभेंट करे बर जावा झन !!
दाई-ददा के दुलार हे कर्जा
अफ़सर बनव के होय तुहँर चर्चा
बिन बिहाव के ए जुड़ाव ले ऊँकर मन कल्लवावा झन !
प्रेम छुए टमरे के सउख, मिलभेंट करे बर जावा झन !!
कली ए महिला भौंरा पुरूष
कली के होगे आने सरूप
भौंरा करिया चुहक उड़ाही मधु रस चुहकवावा झन !!
प्रेम छुए टमरे के सउख, मिलभेंट करे बर जावा झन !!
सुन्ना म मिलय संगवारी निक लगथे
पेड़ घलो ल फूले फरे के सुध लगथे
घाम सहय पाकय आमा गेदराय म कोहा चलावा झन !!
प्रेम छुए टमरे के सउख, मिलभेंट करे बर जावा झन !!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग)
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