छत्तीसगढ़ी कविता - आगे देवउठनी के दिन सुमिरबो सिरी हरिहर बिष्नु- जोहन भार्गव जी

 

आगे देवउठनी के दिन…!!


आगे देवउठनी के दिन सुमिरबो सिरी हरिहर बिष्नु !
चौमास के पुर गे दिन मनाबो सिरी हरिहर बिष्नु !!

कातिक अंजोरी पाख एकादस
नींद ले जागयँ भगवान
लगिन बिहाव मुंडन, संगे-संग
गृह-प्रवेश के बिधान
बड़ पबरित ए दिन रिझाबो सिरी हरिहर बिष्नु !
चौमास के पुर गे दिन सुमिरबो सिरी हरिहर बिष्नु !!

तुलसी दाई ल सिंगार सजावयँ
चुरी महाउर बिंदिया
मड़वा बनय कुसियार चघावयँ
चुनरी फूल बिछिया
हरि संग बिहाव के सुदिन सजाबो सिरी हरिहर बिष्नु !
चौमास के पुर गे दिन सुमिरबो सिरी हरिहर बिष्नु !!

सुख उन्नति के देवइया
सृष्टि के पालनहार
योग शक्ति ले पठोवय
हर पेट ल ओकर अहार
मनवांछित पाए के दिन अमरबो सिरी हरिहर बिष्नु !
चौमास के पुर गे दिन समिरबो सिरी हरिहर बिष्नु !!

कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग)  7974025985

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