सम्हलत अउ सकेलत स्वयं लुका जाथे चंदा, छत्तीसगढ़ी कविता- कवि जोहन भार्गव जी।

 

कहाँ गवाँ जाथे चंदा एक दिन…?


घटत बुझावत देखते-देखत बुझा जाथे चंदा एक दिन !
सम्हलत अउ सकेलत स्वयं लुका जाथे चंदा एक दिन !!

हर मनखे के काया घलो ह चंदा कस बेवहार करय
अंजरी ले काबा म आय अउ समाय के जतन करय
पुर अंजोर पुन्नी कस नभ म छा जाथे चंदा एक दिन !!
सम्हलत अउ सकेलत स्वयं लुका जाथे चंदा एक दिन !!

पाँच तत्व म रचे-बसे एक अंस ओदर म रूप धरय
नर-नारी के अकार बिचार म दाई के सब गुन तिरय
हफ्ता महिना बछर पुरोवत अघा जाथे चंदा एक दिन !!
सम्हलत अउ सकेलत स्वयं लुका जाथे चंदा एक दिन !!

ढलती समै के बेर घलो आथे सबके जीवन म
अंधेरी पाख के दिन बादर समाथे सबके जीवन म
रेंगत-बुलत न जाने कहाँ गवाँ जाथे चंदा एक दिन !!
सम्हलत अउ सकेलत स्वयं लुका जाथे चंदा एक दिन !!

हर जिनगी हर डगर सफर म थिरा-जुड़ा के भागत हे
जाड़ घाम दिन सांझ रात म हर जिनगी ह पहावत हे
कोरी खाँड़ के चीज, खवइया कमा जाथे चंदा एक दिन !!
सम्हलत अउ सकेलत स्वयं लुका जाथे चंदा एक दिन !!

कवि- जोहन भार्गव जी 
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग) -7974025985

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