छत्तीसगढ़ी कविता- जिनगी ल असान बनाथे मरियादा सदगुन जम्मों ! कवि- जोहन भार्गव जी।

 

जागव सनातनी मनखे…!!


अश्लीलता ल छोड़ा ए हर सीखे के गुन नो हय !
फटाका के संग फोरा ए हर राखे के चीज नो हय !!
जिनगी ल असान बनाथे मरियादा सदगुन जम्मों !
संस्कृति धरम ल बोवा झर जाय अवगुन जम्मों !!
फिलिम अउ नसा के फेर म परे त जाबे धारो-धार !
तन ल बनाथें कामी लोभी धन बर दूनों पाकिटमार !!
अजगर कस,ए फिलिम अउ नसा जिनगी के लिलइया ए
संदेस जरी-बुटी कस थोरकिन अवगुन के बगरइया ए
असुर कहाँ गैं असुरेच जानयँ देवता मन देवधाम गईन
लेकिन असुर के जम्मे आदत मनखेच म समा गईन
एक असुर रहय सकुनी नाव के भारी कपटी चाल ओकर
भाई भतीजा ददा बबा ल लड़वाना भर काम ओकर
ए आदत पच्चीस बछर म युद्धभूमि म जा पहुँचिस
अइसन बिक्कट मार-काट के काल कुटुम ल लुइस मिसिस
कोनों रिस्ता हीत-मीत सहपाठी संगी छुटिस नहीं
तभो ले आज के जम्मो मनखे रत्ती भर कछू सिखिस नहीं
कपटी सकुनी ले बढ़ के अउ दगाबाज दुर्योधन कस
अकल ह होगे हम मनखे के मछरी ताकत कोकड़ा कस
जइसन करबे वइसने भर बे कहिके चल दिन जगदीश्वर
जान समझ के उसनिंदहा कस नाटक करथन नारी नर
जागव सनातनी सब मनखे तुहँला जगाय बर आए हवँ
गंगा-जमुना कस बिचार ले काई हटाय बर आए हवँ

कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग) -7974025985

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