दिवंगत बर महाभोज…!!
रोवयँ कलप-कलप के सब झन घर के नर-नारी !!
दिवंगत बर महाभोज दोष बड़ भारी !!
एक तो बज्र के मार म कनिहा रटपटाय
का जतन कर जीबो खाबो आँखी अंधमंधाय
ऊपर ले पाखंड के तिकड़म दुराचारी !
दिवंगत बर महाभोज दोष बड़ भारी !!
गंगा जल म दू ठन हाड़ा बोरे बर खरचा
करम कांड म दसों हजार के पहिली ले करजा
सोग म पेरात ल अउ, पेरय लाचारी !
दिवंगत बर महाभोज दोष बड़ भारी !!
दाई कहय मोर पुतरी हिंट गे बुझा गे आँखी
तन सुआरी के छटपटावय कटा गे पाँखी
तभो ले निरदयी सगा बर कलेवा सुहाँरी !
दिवंगत बर महाभोज दोष बड़ भारी !!
गिधवा रौना बन के झपटयँ दुखिया मन के घर
बाढ़ी म पइसा सकेलेन छुटबो कई बछर
माई कड़ेरी म काल के चलगे हे आरी !
दिवंगत बर महाभोज दोष बड़ भारी !!
बाप के चट्टान कस हौसला झर गे
मरगे घर के जवान बेटा सब्बो झन मरगें
धन के उज्जर ओगरा म गिरगे अंधियारी !
दिवंगत बर महाभोज दोष बड़ भारी !!
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग)
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