अस्करुहा के नोहय जाड़
अस्करुहा के नोहय जाड़…दू म एक दवाई निमेर !
एक तो सुत सुपेती ओढ़ के या फेर जावँर जोड़ी मेर !!
गरमी घानी घाम ह बइरी हवा झांझ बन सेंकय तन
पछीना तर-तर तर-तर चूहय बियाकुल जीव बियाकुल मन
लगय लुका के घरे म रौ झन ओढ़ दसा अंगरखओ ल हेर !
छानही ओरिया उलट जतन खेती म खंती ढेलवानी
गरजय बादर लउकय बिजली धूँक-धूँक बरसय पानी
पक्का घर म निथरे के डर माटी के घर म झिपारी घेर !
माघ फागुन के का कहना भारी सुग्घर दिन अउ रात
कम्मल ओढ़ के रथिया पहा दिन बीतय अराम के साथ
न जाड़ म गुरगुरावय चोला न सेंका-सेंका के तन ल पेर !
कवि- जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग)
मो. न:- 7974025985
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