छत्तीसगढ़ी कविता- कतका अकड़ तोर छाती म समाए हे ! अतका अकड़ झन गइन जउन आए हे !! कवि- जोहन भार्गव जी।

 

कतका अकड़ तोर छाती म…!!


कतका अकड़ तोर छाती म समाए हे !
अतका अकड़ झन गइन जउन आए हे !!

सत्तर बछर के लटपट उमर ले के आए हस
तभो ले घमंड के मारे छाती ल फुलाए हस
तोर कस करोड़ों मनखे माटी म समाए हे !
अतका अकड़ झन गइन जउन आए हे !!

अनगिनत बछर के दुनिया हमर बर अनंत हे
अनगिनत बछर के सृष्टि सबके आदि अंत हे
मौत ल सुन जान के मनखे स्वारथ बर पगलाए हे !
अतका अकड़ झन गइन जउन आए हे !!

रेल म सवार हो के टिकिट ले के जावत चल
जइसन जघा पाए हस वइसने म अमावत चल
जनरल बोगी के सवारी सुते बर धकियाए हे !
अतका अकड़ झन गइन जउन आए हे !!

मैं नेता मैं अफसर मैं बड़का तोप चंद
तैं देहाती तैं गरीब मुँह कस के रख बंद
मैं हरवँ भी आई पी अइसन सोच के डेरवाए हे !
अतका अकड़ झन गइन जउन आए हे !!

कतका अकड़ तोर छाती म समाए हे !
अतका अकड़ झन गइन जउन आए हे !

कवि-  जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग) -7974025985

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