सावन के संग
सावन के संग म संगी,
चल न मोर संग मया के गोठ-गोठिया ले।
तोर पैरी के रुन-झुन रेंगना संग,
थोड़कुन मोरो गीत ल गा ले।
बैरी मोर,तोर लाली चुनरी ल,
अपन सुरतिया ले तिरिया ले।
सुग्घर लागथे तोर सुरतिया मोला,
एककन मोला तोर दरस देखा दे।
सुरुज जइसे चमकथे तोर कान के जोड़ी,
देखे ले मोर करेजा म आगी लगाथे।
सावन के बरसा म संगी,चल न,
मोर संग मया के गोठ-गोठियाले।
तोर बांह के कंगना जोड़ी संग,
सुग्घर तै मोला राग सुना दे।
कोइली कस तोर मीठ बोली ल,
सावन म अउ मीठ बना दे।
रंग म तोर रंग गे हव मैं,
मोला अपन मया के मधुरस चखा दे।
चल न गोरी सावन के संग म,
मोर संग मया के गोठ-गोठिया ले।
युवा कवि साहित्यकार
अनिल कुमार पाली तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
सावन के संग म संगी,
चल न मोर संग मया के गोठ-गोठिया ले।
तोर पैरी के रुन-झुन रेंगना संग,
थोड़कुन मोरो गीत ल गा ले।
बैरी मोर,तोर लाली चुनरी ल,
अपन सुरतिया ले तिरिया ले।
सुग्घर लागथे तोर सुरतिया मोला,
एककन मोला तोर दरस देखा दे।
सुरुज जइसे चमकथे तोर कान के जोड़ी,
देखे ले मोर करेजा म आगी लगाथे।
सावन के बरसा म संगी,चल न,
मोर संग मया के गोठ-गोठियाले।
तोर बांह के कंगना जोड़ी संग,
सुग्घर तै मोला राग सुना दे।
कोइली कस तोर मीठ बोली ल,
सावन म अउ मीठ बना दे।
रंग म तोर रंग गे हव मैं,
मोला अपन मया के मधुरस चखा दे।
चल न गोरी सावन के संग म,
मोर संग मया के गोठ-गोठिया ले।
युवा कवि साहित्यकार
अनिल कुमार पाली तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
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