आथे पुरखा के सुरता कवि अनिल जॉगड़े


आथे पुरखा के सुरता


आथे पुरखा के सुरता पितर पाख म 
देहे आशीष बर आथे घर चल के पाव म 

घर दुवारी ल लिप पोत के 
फूल ओरी ओरी ओरियाऐ हन 
पहुना आगे पितर पुरखा कहिके 
लोटा  म  पानी  मडाये हन 
तरोईपान  म  दार  चाऊर 
पानी  देहेन  हाथ  म 
आथे पुरखा के सुरता पितर पाख म 
देहे आशीष बर आथे घर चल के पाव म 

आनी बानी के रोटी पिठा 
बरा बनाके जेवावत हन 
खालीस कहिके पितर पुरखा 
मने मन म मुस्कावत हन 
हाथ जोड के माथ नवायेन 
गिरेन  उखर  पाव  म 
आथे पुरखा के सुरता पितर पाख म 
देहे आशीष बर आथे घर चल के पाव म 

आशीष देहिन पुरखा मन 
बने रईहव अईसने छाव म
स्वच्छता ल बनाये रखिहव 
देखबोन अवईया साल म
बनाके सुनता रहव मिलके 
कांटा गडे झन तुहर पाव म 
आथे पुरखा के सुरता पितर पाख म 
देहे आशीष बर आथे घर चल के पाव म 
 जय जोहार🙏पितर पुरखा 
             
कवि- अनिल जाॅगडे

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1 Comments

  1. बहुत सुंदर सामयिक रचना

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