कवि अनिल की कविता-सोन बरोबर धान के बाली
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कविता
सोन बरोबर धान के बालीमोर गांव गवई के खेती खार
खिल खिला के हंसत हे
सोन बरोबर धान के बाली
झुमर झुमर के लहरावत हे
नागर बैईला म जागर टोरत
माटी ल हम सिरजाये हन
नीद कोड के खेती खार ल
धरती दाई ल सिंगारे हन
छईया भूईया के पुरवईया
दाई के अंचरा डोलावत हे
सोन बरोबर धान के बाली ,
झुमर झुमर के लहरावत हे
धान कटोरा छत्तीसगढ़ म
सोनहा धान ह उपजगे
होत बिहनिया शीत बरसय
धरती म हीरा मोती बगरगे
पावन माटी ये भूईया के
हमर महर ममहावत हे
सोन बरोबर धान के बाली
झुमर झुमर के लहरावत हे
मय नगरिया छत्तीसगढ़या
अईसन माटी ल माथ नवाव
तोर कोरा के पावन भूईया
मय पाके बड इतरावव
जय हो बेटा किसान मोर
धरती दाई गुन ल गावत हे
मोर गांव गवई के खेती खार, खिल खिला के हंसत हे
सोन बरोबर धान के बाली, झुमर झुमर के लहरावत हे
🌾जय हो छत्तीसगढ़ मोर धान कटोरा 🌾
कवि- अनिल जागडे भैसबोड (बिल्हा )
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