पुस्तक के बोझ

ग्यान के नाव म पुस्तक म लदका गे लईका


पुस्तक के बोझ म लदका गे लईका

अभी के बेरा म मास्टर ले जादा ग्यानी पुस्तक हो गे हे, सब्बो ग्यान स्कूल के पुस्तक म मिलथे तभो ले वो ग्यान के बारे म पढ़ाये बर सब्बो स्कूल म मास्टर जी मन लईका ल पुस्तक के ग्यान ल बताये बर रहिथे, अइसने म लईका ह मास्टर जी के ग्यान के संग पुस्तक के ग्यान घलोक लेथे, अउ आज कल के स्कूल मन अपन ग्यान खुदे बनाये लगे हे, अपने स्कूल म छापे पुस्तक लईका ल खरीदे बर कहिथे, भले ओ ग्यान ल गुरुजी ह पुस्तक ल नइ पढ़ाई तभो ले लईका ल पुस्तक लेना बढ़ जरूरी रहिथे, पहली हमर सियान मन कहये की "बिन गुरु के ग्यान नइ मिले" फेर अभी के शाला प्रबंधन ल देख के लगथे अब तो कहत हे बिन पुस्तक खरीदे बिना गुरु नइ मिले, ये जंजाल प्राइवेट स्कूल मन के लईका मन ल बढ़ बोझ उठाये ल मजबूर कर देवत हे, स्कूल के पुस्तक के बोझ लईका मन उठात हे, अउ लईका मन के पढ़ाई के बोझ दाई-ददा मन उठात हे जेला उठात-उठात दाई-ददा मन के कनिहा ह टूटत हे, फेर कहावत हे न "चाहे कतको चीरा जाये, फेर पावर कम नइ होना चाही " त अइसने बेरा चलत हे देखावा के चक्कर म लईका मन ल प्राइवेट के अंग्रेजी मीडियम स्कूल म पढ़ावत तो हे फेर ओखर खर्च उठात-उठात अपन भाखा के घलोक अर्थी निकालत हे, फेर लईका ह अतका पढ़े के बाद उही दाई-ददा ल जिनगी के पाठ पढ़ाये लगथे अइसने त जमाना आगे हे, अउ अभी के स्कूल मन लईका मन ल गजब के मैनेजनेमेन्ट सिखाथे जेमा अपन भविष्य के पूरा सपना देखथे फेर वो भविष्य के पहली सपना देखइया दाई-ददा बर कोनो जगह नई रहे,

अनिल कुमार पाली, तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़

मो:- 7722906664