मनखे ह बाबा गुरु घासीदास के बिचार "मनखे-मनखे एक बरोबर" सब्द के महत्तम ल कब समझही-

 मनखे ह बाबा गुरु घासीदास के बिचार "मनखे-मनखे एक बरोबर" सब्द के महत्तम ल कब समझही-



छत्तीसगढ़ के महान पुरखा ह सब्बो मनखे ल जगाए बर छुवाछुत भेद-भाव के बिचार ल मनखे के मन ले निकाले बर "मनखे मनखे एक समान" के महत्तम ल सारी दुनिया म बगराइस तेखर बाद भी मनखे ह पुरखा के बोले सब्द के महत्तम ल नइ समझ सकीस, अभी के अतका आधुनिक बेरा म घलोक मनखे ह मनखे ले छुवाछुत के भावना छोटे-बड़े जाती के भावना रखथे, अउ ए बुता कम पढ़े लिखे मनखे ल जादा ग्यानी मनखे मन एक दूसर के परति रखथे, जेखर से अवइया पीढ़ी ह घलोक ओहि भावना ल धर के आघु बढ़त हे जेखर कारन अतका आघुनिक होए के बाद अतका पढ़े लिखे मनखे होए के बाद भी मनखे के मन ले छुवाछुत के भावना ह कमती नइ होवत हे।

हमन देखबो के गंवई-गांव म पहली के सियान मन कम पढ़े लिखे हवय अउ ओखर संग म बढ़ सीधा-साधा घलोक रहिथे तेखर सेती जुन्ना परंपरा जुन्ना विचार मन थोड़कीं अपन जड़ जमा के रखे हे तेखर सेती विचार म थोड़ा अंतर आ जाथे, फेर अभी के बेरा म गांव रहें कि सहर सब्बो कोती नवा सोंच के युवा मन के गिनती दिनों दिन बढ़त जात हे, जेखर से नवा युवा मन के विचार म घलोक बदलाव आत हे, तभो ले जुन्ना बिचार के जड़ अइसे पकड़ के बइठे हे कि नवा लईका मन ल घलोक हिला देवत हे जेखर कारण नवा सोच के लईका मन भी वोही रुढ़ि वादी परंपरा ल सही मान के अपन विचार ल ओखरे आधार म ढालत हे जेखर कारण बाबा गुरु घासीदास जी के दे विचार मनखे मनखे एक समान के विचारधारा ह सब्बो मनखे के करेजा म बस नइ पात हवय।

छुवाछुत अउ जातिवाद के भावना ह सहर ले जादा गांव-गंवई म देखे बर मिलथे जिन्हा मनखे के विचार ह छोटे बड़े जाति म बटें हे, जिन्हा आज के बेरा म कोनो मनखे बीमार पढ़ही त डॉ ल जात पूछ के ओखर से इलाज नइ करवाया फेर कोनो मनखे के ल भात खावना हे त ओखर जाति देखथे दूसर जाति के मनखे ल अपन संग म बइठा के भात नइ खवा सकें एखर से छुवाछुत के भावन ह जाग जही, एही विचारधारा ह आज के नव युवक मन के दिमाक ल खोखला करत जात हे जेखर से मनखे मन अतका पढ़ लिख के घलोक अढहा मनखे असन अपन विचार ल बना डारे हे।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर


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