नसा करे ले घर घलो…!!
नसा करे ले घर घलो…!!
पुरुष मसान परेतिन महिला लइकन मटिया…!
नसा करे ले घर घलो हो जाथे मरघटिया…!!
पीयत पीयत कंकाल लहुट गे पुरुष देवता
झूपत-झूपत होगे दुखिया के नरी ह टेड़गा
लइकन रेमटा नकरोनहा कुपोषित घटिया…!
नसा करे ले घर घलो हो जाथे मरघटिया…!!
दारू ह आय जरई घर म कलह पीरा के
मुरझाबेच करही मुँह फूल मोती हीरा के
नसा म हावय भूत के डेरा दसना खटिया…!
नसा करे ले घर घलो हो जाथे मरघटिया…!!
गाँव गली बस्ती मोहल्ला सगा समाज
काठी नहावन बिहाव छट्ठी म दारू के राज
बुढ़वा जवान माते रइथें संझा रथिया…!
नसा करे ले घर घलो हो जाथे मरघटिया…!!
सत्ता प्रसासन प्रजा पुरुष महिला लोभी
कहिथे आन अउ करथे आन बिक्कट ढोंगी
बिन जुबान बिन नीयत के मनखे परबुधिया…!
नसा करे ले घर घलो हो जाथे मरघटिया…!!
दुख दुविधा ल मिलजुल के ढकेला कभू
मिल के रहव झन करव कपट के खेला कभू
योग करव सहयोग करव मोर भाई भइया…!
नसा करे ले घर घलो हो जाथे मरघटिया…!!
कवि-जोहन भार्गव जी
सेंदरी बिलासपुर (छ.ग)
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