लहुट चल जँवारा…!!
लहुट चल जँवारा अपन खोंधरा म ढल गे मंझनिया…!
जी भर के चर ली खेत डोलिया म ढल गे मंझनिया…!!
दिन भर घूमेन बागे-बगइचा नदिया नरवा
गाँव-गवईं शहर छत छानही तरिया घुरुवा
मन भर बूलेन घर-कुरिया म ढल गे मंझनिया…!
जी भर के चर ली खेत डोलिया म ढल गे मंझनिया…!!
अब के चौमासा बिकट गर्रा-धूँका भारी पानी
दूबक लुकाके खोलटा म रहिके बचाई जिनगानी
सासत म जिनगी कहाँ जाबो दूरिहा ढल गे मंझनिया…!
जी भर के चर ली खेत डोलिया म ढल गे मंझनिया…!!
मौसम हे जालिम शिकारी जमाना देखे रहिबे
छोट-अकन हम जीव सुंदर हे काया सोंचे रहिबे
जीबो सरोत्तर अपन घर-दूरा म ढल गे मंझनिया…!
जी भर के चर ली खेत डोलिया म ढल गे मंझनिया…!!
पेट के आगी म आगी लगय ये बुतावय नहीं
खा-पी ले कतको फेर ये पापी दहरा पटावय नहीं
भर गे तभो चाहे रहि जाए ऊना ढल गे मंझनिया…!
जी भर के चर ली खेत डोलिया म ढल गे मंझनिया…!!
कवि- जोहन भार्गव जी
गड़रिया समाज सेंदरी बिलासपुर
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