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छत्तीसगढ़ी कविता- कतका अकड़ तोर छाती म समाए हे ! अतका अकड़ झन गइन जउन आए हे !! कवि- जोहन भार्गव जी।
अस्करुहा के नोहय जाड़…दू म एक दवाई निमेर- कवि- जोहन भार्गव जी।
बाह्वन रैदास कसाई हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, छत्तीसगढ़ी कविता जोहन भार्गव जी।
रोवयँ कलप-कलप के सब झन घर के नर-नारी !! दिवंगत बर महाभोज दोष बड़ भारी !! कवि- जोहन भार्गव जी
छत्तीसगढ़ी कविता- जिनगी ल असान बनाथे मरियादा सदगुन जम्मों ! कवि- जोहन भार्गव जी।
सम्हलत अउ सकेलत स्वयं लुका जाथे चंदा, छत्तीसगढ़ी कविता- कवि जोहन भार्गव जी।
गीता वेद कहइया ल क़ुरान पढ़े बर कहिथवँ मैं !! नियम धरम के नास्तिक ल संविधान पढ़े बर कहथवँ मैं !!- कवि- जोहन भार्गव जी